Bulbbul Movie Review: Anushka Sharma’s Netflix Production Is Wired All Wrong
pic.Netflix |
फिल्म - बुलबुल
डायरेक्टर - अन्विता दत्त
स्टारकास्ट - तृप्ति डिमरी, अविनाश तिवारी, राहुल बोस, पाओली दाम, परमब्रत चट्टोपाध्याय
प्लेटफॉर्म - नेटफ्लिक्स
Bulbbul Movie Review
Video Trailer-
बुलबुल हिंदी-भाषा का अलौकिक नाटक है, जिसे अन्विता दत्त ने लिखा और निर्देशित किया है। अनुष्का शर्मा और कर्णेश शर्मा द्वारा निर्मित, फिल्म में तृप्ति डिमरी, अविनाश तिवारी, पाओली दाम, राहुल बोस और परमब्रत चट्टोपाध्याय शामिल हैं। यह एक ऐसे व्यक्ति की कहानी बताती है, जो सालों बाद अपने भाई की बाल वधू को खोजने के लिए घर लौटता है, जो अपने पैतृक गाँव में पली-बढ़ी है। 24 जून 2020 को नेटफ्लिक्स पर बुलबुल रिलीज़ हुई थी।
हॉरर फिल्म में सबसे ज़्यादा डरावना क्या होता होगा? चुड़ैल, प्रेतआत्मा। लेकिन किसी हॉरर फिल्म में सबसे बड़ा हॉरर अगर समाज हो तो हमारी मानिए वो हॉरर फिल्म एक अच्छा दर्शक मांगती है। बुलबुल वही फिल्म है।
अनुष्का शर्मा के प्रोडक्शन हाउस क्लीन स्लेट फिल्म की ये नई पेशकश नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो रही है और आप इसे मिस करें ऐसा इस फिल्म में कुछ भी नहीं है।
हां, ये ज़रूर है कि फिल्म अगर आप टिपिकल हॉरर समझ कर देखना चाहेंगे तो आपको निराशा ज़रूर हो सकती है। क्योंकि फिल्म में भूत प्रेत, आत्मा चुड़ैल है पर आपको डर लगेगा नहीं इसकी गारंटी हम आपको दे सकते हैं।
कहानी है 1881 के बंगाल की। उस बंगाल की जो ना चाहते हुए भी अपने काला जादू और ज़मींदारों के लिए मशहूर है। और फिल्म इन दो मशहूर सी चीज़ों के इर्द गिर्द अपनी कहानी बुनती है। फिल्म सस्पेंस नहीं है। आपको पहले सीन से पता है कि असली चुड़ैल कौन है। पर फिल्म कहानी इस सस्पेंस की है नहीं। फिल्म कहानी है तो इस बात कि कैसे और क्यों? और इस बात का हिंट फिल्म कहीं नहीं देती है।
हां, ये ज़रूर है कि फिल्म अगर आप टिपिकल हॉरर समझ कर देखना चाहेंगे तो आपको निराशा ज़रूर हो सकती है। क्योंकि फिल्म में भूत प्रेत, आत्मा चुड़ैल है पर आपको डर लगेगा नहीं इसकी गारंटी हम आपको दे सकते हैं। कहानी है 1881 के बंगाल की। उस बंगाल की जो ना चाहते हुए भी अपने काला जादू और ज़मींदारों के लिए मशहूर है। और फिल्म इन दो मशहूर सी चीज़ों के इर्द गिर्द अपनी कहानी बुनती है। फिल्म सस्पेंस नहीं है। आपको पहले सीन से पता है कि असली चुड़ैल कौन है। पर फिल्म कहानी इस सस्पेंस की है नहीं। फिल्म कहानी है तो इस बात कि कैसे और क्यों? और इस बात का हिंट फिल्म कहीं नहीं देती है।
पहले सीन से दिलचस्पी
अन्विता दत्त आपको फिल्म से पहले ही सीन से जोड़ देती हैं। जहां एक पांच साल की बुलबुल, पेड़ पर बैठकर अपनी शादी के जोड़े में भी खेलने में मगन है। उसकी मां उसे शादी की बारीकियां समझा रही हैं। और यहीं से फिल्म आपको उस दुनिया में लेकर जाने की कोशिश करती है जिसे किसी ने नहीं देखा। मां बुलबुल को समझाती है कि बिछिया पहनते हैं वश में करने के लिए।
बुलबुल और सत्या
बुलबुल के सबसे करीब है उसका देवर सत्या। सत्या उसे पहली बार मिलवाता है उस दुनिया से जिससे बुलबुल को डर लगता है - भूत, प्रेत चुड़ैलों वाली दुनिया। और इन्हीं कहानियों के बीच वो बचपन पार कर जवानी की दहलीज़ पर कदम रखते हैं।
परीकथा विशेषांक
बुलबुल, अनुष्का शर्मा के प्रोडक्शन हाउस से निकली एक परीकथा है।
हर परीकथा में एक हीरोइन होती है जिसे समाज बांधकर रखना चाहता है।
हमारी बुलबुल भी वही हीरोइन है जो ब्याह कर आती है ज़मींदार के इंद्रनील के साथ।
इंद्रनील (राहुल बोस) और उसका पागल जुड़वा भाई महेंद्र (राहुल बोस), जुड़वा भाई की पत्नी बिनोदिनी (पाओली दाम) अब बुलबुल (तृप्ति डिमरी) का नया परिवार है। लेकिन सत्या (अविनाश डिमरी) उसकी दुनिया है। और ये बात बिनोदिनी देखती भी है और इसे अपने पक्ष में इस्तेमाल भी करती है। ये सारे किरदार मानो किसी बंगाली उपन्यास से निकालकर परदे पर उतार दिए गए हैं। हर कोई अपने किरदार में बेहतरीन लगता है।
बेहद आसानी से बांध लेती है फिल्म
अब परियों की कहानी में भूत, प्रेत और चुड़ैल धीरे धीरे जुड़ते जाते हैं। जैसे जैसे गांव में खून बढ़ते जाते हैं। ठाकुर साहब अपनी पत्नी को छोड़कर क्यों जाते हैं, सत्या को लंदन क्यों भेजते हैं, महेंद्र को चुड़ैल कैसे खाती है ये सब आपको कथानक में खींचता चला जाएगा और आप खुद को फिल्म के बीच में उलझा हुआ पाएंगे। उतना ही उलझा जितना कि सत्या है। जो ये नहीं मानता कि चुड़ैल है। उसका मानना है कि सब कोई आदमी कर रहा है। और उसे टोका जाता है, बुलबुल के द्वारा - औरत क्यों नहीं कर सकती? बुलबुल के इस सवाल के साथ अन्विता का लेखन आपसे सीधा सवाल पूछता है - क्या वाकई समाज में सारी सही चीज़ें औरतों को करनी होती है?
बेहतरीन है डायरेक्शन
अन्विता दत्त इस फिल्म में वो दादी या नानी हैं जो आपको परियों की कहानी सुनाती थी। क्योंकि बुलबुल बिल्कुल वैसी ही एक कहानी है। आपको पता है कहानी है लेकिन आप बस एक बार भी पलक झपकाना नहीं चाहते क्योंकि कुछ भी मिस नहीं होना चाहिए। इस बात के लिए अन्विता की जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है।
हर चीज़ में गहरा जुड़ाव
अन्विता हर चीज़ के साथ खेलती हुई नज़र आती हैं। एक बड़ी सी हवेली को जितने बेहतरीन तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है किया गया है। एक अजीब सा ज़मींदार पति, उसका और भी अजीब पागल जुड़वा भाई, उससे भी अजीब छोटी बहू, हर किरदार के साथ आप खुद ही कहानी के छोर जोड़ने की कोशिश करते रहेंगे।
तोड़ती हैं समाज के दायरे
अन्विता दत्त की ये कहानी परीकथाओं से अलग तब होती है जब सत्या की वापसी होती है। हर किसी को लगता है कि राजकुमारी को बचाने उसका राजकुमार आ चुका है। और यहीं अन्विता समाज के सारे दायरे तोड़ती हैं। राजकुमारी को अब राजकुमार की ज़रूरत नहीं है। ये बात फिल्म के छोटे छोटे डायलॉग्स में दिखती है।
हमेशा की तरह शानदार हैं परमब्रत फिल्म में परमब्रम चट्टोपाध्याय की एंट्री फिल्म को एक अलग ही दिशा देती है। परमब्रत का स्क्रीन पर आना लाजवाब होता है और वो दर्शकों को बांधने की इतनी क्षमता रखते हैं कि आसानी से छोटे से किरदार में भी अपना ध्यान आपकी ओर खींच ले जाते हैं।
भूत - प्रेत - चुड़ैलों से ज़्यादा डरावना है समाज
फिल्म में कुछ सीन को चित्रों के ज़रिए दर्शाया गया है और ये फिल्म को इतनी खूबसूरती के साथ अलग स्तर पर ले जाते हैं कि आप अन्विता की तारीफ कर सकते हैं। महिलाओं के उत्पीड़न और अत्याचार को जब अन्विता परदे पर भी तस्वीरों में कैद कर देती हैं तो वो ये साफ करती हैं कि ये कुछ ऐसी यादें होती हैं जो किसी तस्वीर के जितनी ताज़ा हैं। आप इन्हें चाह कर भी ना मिटा पाएंगे ना भूल पाएंगे। ये याद हर महिला कैद कर के रखती है। अपने ज़ेहन में। मरते दम तक।
या शायद मरने के बाद तक। अभिनय अंत में अगर फिल्म के कलाकारों की बात करें तो हर किसी ने अपने हिस्से का काम बखूबी किया है। अविनाश तिवारी जैसे कलाकार के साथ काफी कुछ किया जा सकता है लेकिन फिल्म में उनके करने के लिए ज़्यादा कुछ था नहीं। इस पूरी फिल्म में चमकती हैं तृप्ति डिमरी। उनकी खूबसूरती अगर आपको कायल बना देती है तो उनके एक्सप्रेशन आपको उनके किरदार को और जानने के लिए मजबूर कर देते हैं।
हमारी राय
बुलबुल का अंत आपको किसी क्लाईमैक्स जैसा नहीं लगेगा। लेकिन पूरी फिल्म आपको किसी शानदार क्लाईमैक्स का वादा करती दिखाई भी नहीं देती है। कुल मिलाकर आप ये डेढ़ घंटे की फिल्म नेटफ्लिक्स पर बिना समय बर्बाद किए हुए देख डालिए। बुलबुल आपको निराश नहीं करेगी।Bulbbul Movie Review in Hindi
No comments:
Post a Comment